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"यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह / प्रभाकर माचवे" के अवतरणों में अंतर
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यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की- <br> | यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की- <br> |
14:16, 27 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की-
हमें न कोई पनाह अथवा शरण चाहिए, अन्ध-भक्ति की !
यहाँ सरल अन्तर दो परस्परातुर, और चाहिए भी क्या ?
हमें न किंचिन्मात्र ज़रूरत किसी तर्क की, किसी युक्ति की !