भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
− | |||
− | + | <poem> | |
+ | दरिंदा | ||
+ | आदमी की आवाज़ में | ||
+ | बोला | ||
− | + | स्वागत में मैंने | |
− | + | अपना दरवाज़ा | |
− | + | खोला | |
− | + | और दरवाज़ा | |
− | + | खोलते ही समझा | |
− | + | कि देर हो गई | |
− | + | मानवता | |
− | + | थोड़ी बहुत जितनी भी थी | |
− | + | ढेर हो गई ! | |
− | + | </Poem> | |
− | मानवता | + | |
− | थोड़ी बहुत जितनी भी थी | + | |
− | ढेर हो गई !< | + |
12:55, 12 मई 2009 के समय का अवतरण
दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला
स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला
और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई
मानवता
थोड़ी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !