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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]]}}[[Category:कविताएँ]][[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>ऐसी जगह पे आके बस गया हूं दोस्तोबारिश का जहां कोई भी होता नहीं मौसमपतझड़ हो या सर्दी हो या गर्मी का हो आलमवर्षा की फुहारें बस, गिरती रहें हरदम
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मिट्टी है यहां गीली, पानी भी गिरे चुप चुपना नाव है काग़ज़ की, छप छप ना सुनाई देवो सौंघी सी मिट्टी की ख़ुशबू भी नहीं आतीवो भीगी लटों वाली, कमसिन ना दिखाई दे
ऐसी जगह पे आके बस गया हूं दोस्तो<br>इस शहर की बारिश का जहां ना कोई भी होता नहीं मौसम<br>भरोसा हैपतझड़ हो या सर्दी हो या गर्मी का हो आलम<br>पल भर में चुभे सूरज, पल भर में दिखें बादलवर्षा की फुहारें बसक्या खेल है कुदरत का, गिरती रहें हरदम <br><br>ये कैसे नज़ारे हैंसब कुछ है मगर फिर भी ना दिल में कोई हलचल
मिट्टी है यहां गीली, पानी भी गिरे चुप चुप<br>ना नाव है काग़ज़ की, छप छप ना सुनाई दे<br>वो सौंघी सी मिट्टी की ख़ुशबू भी नहीं आती<br>वो भीगी लटों वाली, कमसिन ना दिखाई दे<br><br> इस शहर की बारिश का ना कोई भरोसा है<br>पल भर में चुभे सूरज, पल भर में दिखें बादल<br>क्या खेल है कुदरत का, ये कैसे नज़ारे हैं<br>सब कुछ है मगर फिर भी ना दिल में कोई हलचल<br><br> चेहरे ना दिखाई दें, छातों की बनें चादर<br>अपना ना दिखे कोई, सब लगते हैं बेगाने<br>लगता ही नहीं जैसे यह प्यार का मौसम है<br>शम्मां हो बुझी गर तो, कैसे जलें परवाने<br><br/poem>
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