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"इंक़लाब कहलाएगा / तेजेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जब भी हारे, हारे अपने, साथी और रफीक़ों से<br><br>
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मेहनतकश पर समझ चुके हैं, अब हर चाल ज़माने की<br>
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अगर नहीं हालत बदली, हालात को बदला जायेगा
अब न हामी भरता कोई, मुफ़्त में ही लुट जाने की<br><br>
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21:39, 16 मई 2009 के समय का अवतरण

न घबराए कभी कहीं, जो न हारे तकलीफ़ों से
जब भी हारे, हारे अपने, साथी और रफीक़ों से

अपने मन के घाव दिखाए, मेहनतकश इंसानों ने,
मोड़ रखा अब तक मुख जिनसे, है जग के भगवानों ने

मेहनतकश पर समझ चुके हैं, अब हर चाल ज़माने की
अब न हामी भरता कोई, मुफ़्त में ही लुट जाने की

अब न लाभ उठाने देंगे, ग़ुरबत और लाचारी का
भीख पे जीना छोड दिया अब, हक़ मांगें ख़ुद्दारी का

अगर नहीं हालत बदली, हालात को बदला जायेगा
समय बदलना ही शायद, अब इंक़लाब कहलाएगा