भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"याद / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह=चुनी हुई कवितायें / अमृत...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चुनी हुई कवितायें / अमृता प्रीतम
 
|संग्रह=चुनी हुई कवितायें / अमृता प्रीतम
 
}}
 
}}
[[Category:पंजाबी]]
+
[[Category:पंजाबी भाषा]]
 
<poem>
 
<poem>
 
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
 
आज सूरज ने कुछ घबरा कर

16:15, 23 मई 2009 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अमृता प्रीतम  » संग्रह: चुनी हुई कवितायें
»  याद

आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया….

आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया….

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है….

साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं

वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये….

तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया….