भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्यार की पाती / राकेश खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[राकेश खंडेलवाल]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:राकेश खंडेलवाल]]
+
|रचनाकार = राकेश खंडेलवाल  
 
+
}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
[[Category:गीत]]
 
+
 
लिखी है पाँखुरी पर ओस से जो भोर ने आकर<br>
 
लिखी है पाँखुरी पर ओस से जो भोर ने आकर<br>
 
तुम्हारे नाम भेजी थी वो मैने प्यार की पाती<br>
 
तुम्हारे नाम भेजी थी वो मैने प्यार की पाती<br>

16:55, 24 मई 2009 के समय का अवतरण

लिखी है पाँखुरी पर ओस से जो भोर ने आकर
तुम्हारे नाम भेजी थी वो मैने प्यार की पाती
चितेरी वादियों में गंध ने पुरबाई से मिलकर
सपन की चूनरी, है जन्म के अनुबंध से काती

नयन की छैनियों ने कल्पना को शिल्प में ढाला
हृदय की आस ने वरदान को आकार दे डाला
हजारों साधनायें आज हैं अस्तित्व में आईं
तपस की साध ने जिनको अभी तक मंत्र में पाला
ढली है आज जो प्रतिमा, तुम्हें शायद विदित होगा
क्षितिज पर रोज ही प्राची, यही इक चित्र रच जाती

अधर के बोल के आमंत्रणों का आज यह उत्तर
गगन से रश्मियों के साथ आया है उतर भू पर
बँधे जो धड़कनों से साँस के सौगन्ध के धागे
लगा है गूँजने कंपन भरा उनका सुरीला स्वर
मचलतीं लहरियाँ फिर आज वे सब गुनगुनाती सी
जिन्हें हम छेड़ते थे साँझ को करते दिया-बाती

लगा यायावरी हर कामना ने नीड़ पाया है
तुम्हारे पंथ ने सहचर मुझे अपना बनाया है
पड़ी इक ढोलकी पर थाप, ने शहनाई से मिल कर
पिरो नव-राग में वह गीत फिर से गुनगुनाया है
जिसे तुम बैठ कर एकाकियत के मौन इक पल में
नदी की धार के संग सुर मिला कर थीं रही गाती