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"पद / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
  
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जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥
  
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कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
  
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो।
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परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥
  
प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥
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जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
  
अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो।
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'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥
 
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सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥
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हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो।
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'सूरदास' प्रभु बिनु दुख दूनो, नैननि नीर बह्यो॥
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17:19, 24 मई 2009 के समय का अवतरण

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥