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पद / सूरदास

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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सूरदास]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:सूरदासपद]]
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो।परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥
प्रीति पतंग करी दीपक सोंजिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, आपै प्रान दह्यो॥क्यों करील-फल खावै।
अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥ हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो। 'सूरदास' प्रभु बिनु दुख दूनोकामधेनु तजि, नैननि नीर बह्यो॥छेरी कौन दुहावै॥