Changes

बसेरा / कविता वाचक्नवी

4 bytes removed, 20:11, 5 जून 2009
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
फिर
एक नीड़.......लंबी उडा़न.....
इधर उजड़ गया घोंसला,
जो किसी नींव गडे़ घर की
जोड़ने लगा तिनके
जुड़ने लगा नीड़,
आकाश में....हवा में....लहरों में....
एक दिन
शून्य में लय हो गया
उजड़ गया
डूब गया,
:::तिनका-तिनका था :::छितरा गया, :::बस!!
उड़ जाना है अब।
चिड़िया! चल उड़....
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,040
edits