भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक लड़की साँवली-सी / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: एक लड़की सांवली-सी हँस-मुख भी पढ़ती है किताब नए ज़माने की सिखती है ...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
 +
}}
 +
<poem>
 
एक लड़की सांवली-सी
 
एक लड़की सांवली-सी
 
हँस-मुख भी
 
हँस-मुख भी
पंक्ति 6: पंक्ति 11:
 
करती है कोशिश
 
करती है कोशिश
 
रूढ़ियाँ मिटाने की
 
रूढ़ियाँ मिटाने की
और करती है भरोसा पेशेवर अध्यापकों का.
+
और करती है भरोसा पेशेवर अध्यापकों का।
  
 
पेशेवर अध्यापक चलाते हैं ब्यूरो
 
पेशेवर अध्यापक चलाते हैं ब्यूरो
पंक्ति 14: पंक्ति 19:
 
इनमें से कुछ तो कमाते हैं
 
इनमें से कुछ तो कमाते हैं
 
कुछ खुजली मिटाते हैं
 
कुछ खुजली मिटाते हैं
कुछ मन मसोसकर रह जाते हैं.
+
कुछ मन मसोसकर रह जाते हैं।
  
 
सांवली-सी मासूम लड़की
 
सांवली-सी मासूम लड़की
पंक्ति 35: पंक्ति 40:
 
जबकि
 
जबकि
 
बता दिया गया था उसे पहले ही
 
बता दिया गया था उसे पहले ही
सिद्धान्त उसके विरूद्ध हैं.
+
सिद्धान्त उसके विरूद्ध हैं।
 +
</poem>

23:43, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

एक लड़की सांवली-सी
हँस-मुख भी
पढ़ती है किताब नए ज़माने की
सिखती है सबक
दुनिया बदलने की
करती है कोशिश
रूढ़ियाँ मिटाने की
और करती है भरोसा पेशेवर अध्यापकों का।

पेशेवर अध्यापक चलाते हैं ब्यूरो
नए ज़माने का
दुनिया बदलने का
रूढ़ियां मिटाने का
इनमें से कुछ तो कमाते हैं
कुछ खुजली मिटाते हैं
कुछ मन मसोसकर रह जाते हैं।

सांवली-सी मासूम लड़की
गरीब न होती तो बन जाती
फैशन-डिज़ायनर
या अमेरिका जाकर पढ़ती मैनेजमेंट
कभी न करती--प्रेम या क्रांति
प्रेमकथा और क्रांतिकथा के मध्यवर्गीय पाठ ने
भरमा दी बुद्धि
कि तौल न पाई अपना वजन
गलती तो हुई उससे
फिर क्यों करे अफ़सोस कोई
उसकी आत्म-हत्या पर!

नहीं टूटे थे पुराने संस्कार उसके
मांग करती थी आज भी
इंसानियत की
वफादारी की
इज्ज़त और नैतिकता की
जबकि
बता दिया गया था उसे पहले ही
सिद्धान्त उसके विरूद्ध हैं।