{{KKRachnakaarParichay|रचनाकार=मोमिन }}<poem>
हक़ीम मोमिन ख़ान 'मोमिन' मुग़ल काल के अंतिम दौर के शाइर थे। वह मिर्ज़ा ग़ालिब व ज़ौक़ के समकलीन थे और बहादुर शाह ज़फ़र के मुशायरों में भाग लेने लालक़िले जाया करते थे। वह अत्यंत भावुक और संवेदनशील शायर थे।
::::: मैंने तुमसे क्या किया और तुमने मुझसे क्या किया
अन्कअ आपका एक शे'र मुलाहिज़ा फरमाएँ, जिससे मिर्ज़ा ग़ालिब इस क़दर प्रभावित हुए कि इस शे'र के बदले अपना सारा दीवान 'मोमिन' को देने की पेशकश की थी:
::::: तुम मेरे पास होते हो गोया
मोमिन स्वाभिमानी और संस्कारी थे। उन्हें सबकी इज्जत और प्यार हासिल था। उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी ख़ुद ही की थी। वह अच्छे ज्योतिष तो थे ही, अत: उन्होंने बताया कि अब से पाँच दिन, पाँच सप्ताह, पाँच महीने अथवा पाँच वर्ष के बाद मैं दुनिया से कूच कर जाऊँगा। इस भविष्यवाणी के ठीक पाँच महीने बाद उनका इंतकाल हो गया।
शाय्द शायद मोमिन जानते थे कि जन्नत जाने पर उनका क्या हश्र होगा, इसलिए उन्होंने लिखा:::::: मुझे जन्नत में वह सनम न मिला
::::: हश्र और एक बार होना था
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