भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वस्तुतः / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:भवानीप्रसाद मिश्र]]
+
{{KKRachna
 
+
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
}}
 
+
 
मैं जो हूँ<br>
 
मैं जो हूँ<br>
 
मुझे वहीं रहना चाहिए।<br>
 
मुझे वहीं रहना चाहिए।<br>

18:58, 24 जून 2009 के समय का अवतरण

मैं जो हूँ
मुझे वहीं रहना चाहिए।
यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेड़
नदी की लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में
उपस्थित भविष्य में
मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए
तेज गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कड़ाके की सर्दी
खून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी
मैं जो हूँ
मुझे अपना होना
ठीक ठीक सहना चाहिए
तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
हल बनने के लिए
बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए
मैं जो हूँ
मुझे वह बनना चाहिए
धारा हूँ अन्त: सलिला
तो मुझे कुएँ के रूप में
खनना चाहिए
ठीक जरूरतमंद हाथों से
गान फैलाना चाहिए मुझे
अगर मैं आसमान हूँ
मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रहा हूँ
जो हूँ
वही होने से डर रहा हूँ ।