भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जन्म-कुंडली / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कुंवर नारायण | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
फूलों पर पड़े पड़े अकसर मैंने | फूलों पर पड़े पड़े अकसर मैंने | ||
19:03, 24 जून 2009 का अवतरण
फूलों पर पड़े पड़े अकसर मैंने
ओस के बारे में सोचा है –
किरणों की नोकों से ठहराकर
ज्योति-बिन्दु फूलों पर
किस ज्योतिर्विद ने
इस जगमग खगोल की
जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ?
फिर क्यों निःश्लेष किया
अलंकरण पर भर में ?
एक से शुन्य तक
किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ?
और फिर उनको भी सोचा है –
वृक्षों के तले पड़े
फटे-चिटे पत्ते-----
उनकी अंकगणित में
कैसी यह उधेडबुन ?
हवा कुछ गिनती हैः
गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती
और कहीं पर रखती है ।
कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर
यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...।
कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष-
गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष