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"शारदे / महेश अनघ" के अवतरणों में अंतर

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कलमुंही तू दो टके की क्यों गई थी कार में
  
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क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
  
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खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
 
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वंश की संतान है
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साहबों की साज़ सज्जा
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इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
 
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कामना थी पांव तेरे
 
 
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सात फेरे पाड़ते
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कामना थी पांव तेरे महावर से मांड़ते
  
क्या करें ऊंचे पदों ने
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फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
  
पद दलित कर छंद सारे
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क्या करें ऊंचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
  
 
मार डाले दिन
 
मार डाले दिन

20:18, 12 सितम्बर 2006 का अवतरण

कवि: कुमार रवींद्र

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मूर्तिवाला शारदे को

हथौड़े से पीटता है

एक काले दिन


कलमुंही तू दो टके की क्यों गई थी कार में

क्या वहां साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में

खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर

पर्व वाले दिन


तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है

साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है

इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला

और टाले दिन


कामना थी पांव तेरे महावर से मांड़ते

फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते

क्या करें ऊंचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे

मार डाले दिन