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"भेड़िये / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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00:00, 6 जुलाई 2009 का अवतरण

भ्रम मत पालो
कि वेद पुरान पढ़कर
भेड़िये सभ्य हो जाएंगे

भ्रम मत पालो
कि सभ्य भेड़ियों के नाखून
अपनी आदत भूल जाएंगे

भ्रम मत पालो
कि भेड़िये तुम्हारी व्यथा सुनकर
पिघल जाएंगे

भ्रम मत पालो
कि विकास के क्रम में
भेड़िये ख़त्म हो जाएंगे

सच यही है
कि भेड़िये कभी ख़त्म नही होते
भेड़िये हर समय और हर जगह होते हैं
और सभी भेड़िये हिंस्र होते हैं
बस उन्हें रहता है
सही वक़्त और मौक़े का इंतज़ार


रचनाकाल : 2000