भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भेड़िये / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस }} <poem> भ्रम मत पालो कि वेद पुरान पढ़कर ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
− | ''' | + | '''रचनाकाल : 2000''' |
</Poem> | </Poem> |
00:00, 6 जुलाई 2009 का अवतरण
भ्रम मत पालो
कि वेद पुरान पढ़कर
भेड़िये सभ्य हो जाएंगे
भ्रम मत पालो
कि सभ्य भेड़ियों के नाखून
अपनी आदत भूल जाएंगे
भ्रम मत पालो
कि भेड़िये तुम्हारी व्यथा सुनकर
पिघल जाएंगे
भ्रम मत पालो
कि विकास के क्रम में
भेड़िये ख़त्म हो जाएंगे
सच यही है
कि भेड़िये कभी ख़त्म नही होते
भेड़िये हर समय और हर जगह होते हैं
और सभी भेड़िये हिंस्र होते हैं
बस उन्हें रहता है
सही वक़्त और मौक़े का इंतज़ार
रचनाकाल : 2000