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कोई भी फ़स्ल हो, फ़िरदौस-ब-दामाँ चलिए
रस्मे-देरिनःए-आलम<ref>संसार की पुरानी प्रथा</ref> को बदलने के लिए
रस्मे-देरीनःए-आलम से गुरेज़ाँ चलिए
आसमानों से बरसता है अँधेरा कैसाअपनी पलकों पे लिए जश्ने-चराग़ाँ चलिए
शोलः-ए-जाँ को हवा देती है ख़ुद बादे-समूम
दिल की राहों से सूए-मंज़िले-इन्साँ चलिए
ग़ग़म नयी सुब्‌ह के तारे का बहुत है लेकिन
लेके अब परचमे-ख़ुर्शीदे ज़र-अफ़शाँ चलिए