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<poem>जो रही और कोई दम यही हालत दिल की। 
आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥
 
घर छुटा, शहर छुटा, कूचये-दिलदार छुटा।
 
कोहो-सहरा में लिये फ़िरती है वहशत दिल की॥
 
रास्ता छोड़ दिया उसने इधर का ‘आसी’।
 क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥दिल की॥
</poem>
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