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कवि: विष्णु विराट
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महोत्सव है नन्द के आनन्द का ये,
कृष्ण के मन का मनोरथ है यशोदा॥
कुंज-गलियों-सी सुखद शीतल लगे है,
परम पावन भक्ति का पथ है यशोदा॥
देवकी ने दे दिया जो चीर कर हिय
उस अमर उपकार में नत है यशोदा॥
सुन्दरम हैं मदनमोहन राधिका संग,
शिवम हैं नंदराय तो सत है यशोदा॥
दधि बिलोती डूबती वात्सल्य-रस में,
एक संस्कृति-पर्व अक्षत है यशोदा॥
द्वारका जब से गया ब्रज चन्द्र इसका,
अगि्पंथी-सूर्य का रथ है यशोदा॥
हंस जिसे गढ़ता अनस्वर वह 'विराट',
स्नेह से परिपूर्ण शाश्वत है यशोदा॥