भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खड़े न रह पाये जमकर / नईम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
लेखक: [[नईम]] | लेखक: [[नईम]] | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
− | [[Category: | + | [[Category:गीत]] |
[[Category:नईम]] | [[Category:नईम]] | ||
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
+ | |||
+ | खड़े न रह पाये जमकर | ||
+ | |||
+ | हम किसी ठौर भी | ||
+ | |||
+ | लिखा-पढ़ा कुछ काम न आया | ||
+ | |||
+ | किसी तौर भी | ||
+ | |||
+ | |||
+ | रहे बांधते हाथ कामयाबी के सेहरे, | ||
+ | |||
+ | देते रहे पांव अपने गैरों के पहरे | ||
+ | |||
+ | मैं ही एक अकेला जन्तु | ||
+ | |||
+ | नहीं हूं, माना | ||
+ | |||
+ | होंगे मेरे जैसे लागर | ||
+ | |||
+ | कई और भी | ||
+ | |||
+ | |||
+ | रहे जोतते इनके, उनके खेत जनम से | ||
+ | |||
+ | मालिक मकबूजा से मारे हुये भरम के | ||
+ | |||
+ | छिनते रहे हमारे कब्जे | ||
+ | |||
+ | बड़े जतन से | ||
+ | |||
+ | हुए न अपने शाजापुर | ||
+ | |||
+ | मक्सी, पचौर भी | ||
+ | |||
+ | |||
+ | जिनका नहीं विगत उनका भी क्या आगत है? | ||
+ | |||
+ | अनबन ठनी हुई, अपने पर थू - लानत है | ||
+ | |||
+ | रातों लगी रतौंधी | ||
+ | |||
+ | दिन में साफ नहीं कुछ | ||
+ | |||
+ | अपने विकट पतन का | ||
+ | |||
+ | दिखता नहीं छोर भी | ||
+ | |||
+ | विवश भिखारी ठाकुर का | ||
+ | |||
+ | गब्बर घिचोर भी |
21:07, 17 सितम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: नईम
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
खड़े न रह पाये जमकर
हम किसी ठौर भी
लिखा-पढ़ा कुछ काम न आया
किसी तौर भी
रहे बांधते हाथ कामयाबी के सेहरे,
देते रहे पांव अपने गैरों के पहरे
मैं ही एक अकेला जन्तु
नहीं हूं, माना
होंगे मेरे जैसे लागर
कई और भी
रहे जोतते इनके, उनके खेत जनम से
मालिक मकबूजा से मारे हुये भरम के
छिनते रहे हमारे कब्जे
बड़े जतन से
हुए न अपने शाजापुर
मक्सी, पचौर भी
जिनका नहीं विगत उनका भी क्या आगत है?
अनबन ठनी हुई, अपने पर थू - लानत है
रातों लगी रतौंधी
दिन में साफ नहीं कुछ
अपने विकट पतन का
दिखता नहीं छोर भी
विवश भिखारी ठाकुर का
गब्बर घिचोर भी