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करनी पड़ी सख़्त रख़वाली | करनी पड़ी सख़्त रख़वाली |
07:16, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
करनी पड़ी सख़्त रख़वाली
जब कोई भी हसरत प्आली
मीत नहीं उम्मीद नहीं है
मन मन्दिर है खाली-खाली
होठों होठों ग़ज़लें ग़म की
आँखों-आँखों इश्क की लाली
कैसे चुप्पी हम न तोड़ें
है उसकी हर नज़र सवाली
अब जग से क्या लेना देना
पी ही ली जब प्रेम प्याली