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"सूर्य–सा मत छोड़ जाना / निर्मला जोशी" के अवतरणों में अंतर
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मैं तुम्हारी बाट जोहूं | मैं तुम्हारी बाट जोहूं | ||
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तुम दिशा मत मोड़ जाना। | तुम दिशा मत मोड़ जाना। | ||
तुम अगर ना साथ दोगे | तुम अगर ना साथ दोगे | ||
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भावना के ज्वार कैसे | भावना के ज्वार कैसे | ||
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देह से हूं दूर लेकिन | देह से हूं दूर लेकिन | ||
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हूं हृदय के पास भी मैं। | हूं हृदय के पास भी मैं। | ||
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नयन में सावन संजोए | नयन में सावन संजोए | ||
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गीत हूं¸ मधुमास भी मैं। | गीत हूं¸ मधुमास भी मैं। | ||
तार में झंकार भर कर | तार में झंकार भर कर | ||
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बीन–सा मत तोड़ जाना। | बीन–सा मत तोड़ जाना। | ||
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पी गई सारा अंधेरा | पी गई सारा अंधेरा | ||
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दीप–सी जलती रही मैं। | दीप–सी जलती रही मैं। | ||
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इस भरे पाषाण युग में | इस भरे पाषाण युग में | ||
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मोम–सी गलती रही मैं। | मोम–सी गलती रही मैं। | ||
प्रात को संध्या बनाकर | प्रात को संध्या बनाकर | ||
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सूर्य–सा मत छोड़ जाना। | सूर्य–सा मत छोड़ जाना। |
06:53, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखिका: निर्मला जोशी
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मैं तुम्हारी बाट जोहूं तुम दिशा मत मोड़ जाना।
तुम अगर ना साथ दोगे
पूर्ण कैसे छंद होंगे।
भावना के ज्वार कैसे
पंक्तियों में बंद होंगे।
वर्णमाला में दुखों की और
कुछ मत जोड़ जाना।
देह से हूं दूर लेकिन
हूं हृदय के पास भी मैं।
नयन में सावन संजोए
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।
तार में झंकार भर कर बीन–सा मत तोड़ जाना।
पी गई सारा अंधेरा दीप–सी जलती रही मैं। इस भरे पाषाण युग में मोम–सी गलती रही मैं।
प्रात को संध्या बनाकर सूर्य–सा मत छोड़ जाना।