भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूर्य–सा मत छोड़ जाना / निर्मला जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखिका: [[निर्मला जोशी]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:निर्मला जोशी]]
+
|रचनाकार=निर्मला जोशी
 +
}}
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
मैं तुम्हारी बाट जोहूं
 
मैं तुम्हारी बाट जोहूं
  
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
तुम अगर ना साथ दोगे
 
तुम अगर ना साथ दोगे
  
पूर्ण कैरो छंद होंगे।
+
पूर्ण कैसे छंद होंगे।
  
 
भावना के ज्वार कैसे
 
भावना के ज्वार कैसे
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
पंक्तियों में बंद होंगे।
 
पंक्तियों में बंद होंगे।
  
वर्णमाला में दुखों की और
 
  
कुछ मत जोड़ जाना।
+
वर्णमाला में दुखों की
 +
 
 +
और कुछ मत जोड़ जाना।
  
  
पंक्ति 29: पंक्ति 30:
  
 
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।
 
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।
 +
  
 
तार में झंकार भर कर
 
तार में झंकार भर कर
पंक्ति 42: पंक्ति 44:
  
 
मोम–सी गलती रही मैं।
 
मोम–सी गलती रही मैं।
 +
  
 
प्रात को संध्या बनाकर
 
प्रात को संध्या बनाकर
  
 
सूर्य–सा मत छोड़ जाना।
 
सूर्य–सा मत छोड़ जाना।

19:15, 4 जनवरी 2008 के समय का अवतरण

मैं तुम्हारी बाट जोहूं

तुम दिशा मत मोड़ जाना।


तुम अगर ना साथ दोगे

पूर्ण कैसे छंद होंगे।

भावना के ज्वार कैसे

पंक्तियों में बंद होंगे।


वर्णमाला में दुखों की

और कुछ मत जोड़ जाना।


देह से हूं दूर लेकिन

हूं हृदय के पास भी मैं।

नयन में सावन संजोए

गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।


तार में झंकार भर कर

बीन–सा मत तोड़ जाना।


पी गई सारा अंधेरा

दीप–सी जलती रही मैं।

इस भरे पाषाण युग में

मोम–सी गलती रही मैं।


प्रात को संध्या बनाकर

सूर्य–सा मत छोड़ जाना।