|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
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[[Category:कविता]]
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अंजाम से डरने वालेदिन भर की जी -हुज़ूरी के बाद
किसी शाम घण्टों
हम अपने ड्राइंग रूम में
बहस के मुद्दे मेम में अथवा शहर के चुनिन्दा कॉफ़ी हाउस में बहस के मुद्दे में बरबस
भ्रष्टाचार को लपेट लेते हैं
व्यवस्था को ताने देते हैं
ही बहस-मुबाहिसों में
होते हैं शामिल.
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