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15:45, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

नहीं जानता किसके साथ हूँ मैं किस प्रकीक्षा में
जो मेरे गीतों में भरना चाहता है धुन उनके साथ
या जो मुझे छोड़ जाता है अनिश्चय में

कहाँ पहुँच मुड़कर देखूँ पीछे किसके लिए
जो मेरे साथ चलकर छूट गया है पीछे उसके लिये
या जो बढ गया है आगे

भागना नहीं है मुझे अपने से
और उनसे भी जिन्होंने मुझे भीड़ में कभी
छू लिया अनजाने में
और जिन्होंने चलते वक़्त मुझे
हाथ हिला कर किया विदा
सबके सब मेरे भीतर है मौज़ूद

सोचता हूँ
उन्होंने जो दिया उसके साथ जब कभी लौटूँ
उनके और मेरे बीच का कोई पुल न टूटा हो
जो मेरा रह गया उनके पास
मार्ग में उसका ओई चिन्ह न छूटा हो