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18:06, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
संगीत नीरव
सोचिए
क्यों इस नदी में
बह रहा पानी नहीं अब
इस नदी में सिर्फ
बालू-रेत ही हैं, जल नहीं है
सीप, घोंघे, केकड़े, पर
हो रहे विह्वल नहीं हैं
मछलियों को
तैरने से भी रहा
कोई न मतलब
इस नदी में जल
कभी पीने नहीं आते पखेरु
दूर से ही नमन कर लेते
हकासे ढोर-लेरु
इस नदी को
बांधने की योजना
अब है असंभव
गांव घर, सीवान का
कोई पता देती न यह भी
एक जैसी हो गयी है सांझ
रातें, दिन, सुबह भी
हो चुका है
इस नदी के तटों का
संगीत नीरव