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विपर्यय / मनोज कुमार झा
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,
17:21, 4 सितम्बर 2009
<poem>
रीढ मोडी
रीढ़ मोड़ी
घुटने टेके
बना
घोडा
घोड़ा
बच्चे
बच्चे
बैठें
करें खिलखिल
खिले सरसों
मन हरा हो
पर ये खट खट
किसके जूते
कौन सिर पे मूतता है
हे प्रभो, तूं सूतता है।
</poem>
अनिल जनविजय
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