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सदस्य वार्ता:Subhash

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सुभाश वर्मा
रुद्रपुर
 
 
चंद मिसरे
 
जहां के लिये सिरफ़िरे ही सही हैं
 
सभी की नज़र से गिरे ही सही हैं
 
अगर इस ज़माने में सच बात कहना
 
बुरा है तो फ़िर हम बुरे ही सही हैं
 
 
तिशन्गी और खलिस शामो-सहर होती है
 
जिन्दगी रास न आये तो ज़हर होती है
 
सख्त हो जाये तो औरों को मिटा सकती है
 
तल्ख हो जाये तो ये खुद पे कहर होती है
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