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विसर्जन / महादेवी वर्मा
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|संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा
}}
<poem>
निशा को, धो देता राकेश
चाँदनी में जब अलकें खोल,
कली से कहता था मधुमास
’बता दो मधुमदिरा का मोल’;
भटक जाता था पागल बात
धूल में तुहिन कणों के हार;
सिखाने जीवन का संगीत
तभी तुम आये थे इस पार।
</poem>
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