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रजतकरों की मृदुल तूलिका
से ले तुहिनबिन्दु सुकुमार,
कलियों पर जब आँक रहा था
करूण कथा अपनी संसार;
तरल हृदय की उच्छ्वासें जब
भोले मेघ लुटा जाते,
अन्धकार दिन की चोटों पर
अंजन बरसाने आतेआते।
मधु की बूदों में छ्लके जब
तारक लोकों के सुचि फूल,
विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा
सिहर उठा वह नीरव फूलकूल;
मूक प्रणय से , मधुर व्यथा सेस्वप्न लोक के से आह्वान,
वे आये चुपचाप सुनाने
तब मधुमय मुरली की तानतान।
चल चितवन के दूत सुना
उनके, पल में रहस्य की बात,
मेरे निर्निमेष पलकों में
मचा गये क्या क्या उत्पात!
जीवन है उन्माद तभी से
निधियां प्राणों के छाले,
मांग रहा है विपुल वेदना
के मन प्याले पर प्याले!
पीड़ा का साम्राज्य बस गया
उस दिन दूर क्षितिज के पासपार,
मिटना था निर्वाण जहां
नीरव रोदन था पहरेदार!
कैसे कहती हो सपना है
अलि ! उस मूक मिलन की बात?
भरे हुए अब तक फूलों से
मेरे आँसू उनके हास!
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