{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=केदारनाथ सिंह]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह]]}}{{KKCatKavita}}<Poem>
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~काली मिट्टी काले घरदिन भर बैठे-ठाले घर
काली नदिया काला धन
सूख रहे हैं सारे बन
काली मिट्टी काला सूरज काले घरहाथझुके हुए हैं सारे माथ
दिन भर बैठे-ठाले घरकाली बहसें काला न्यायख़ाली मेज़ पी रही चाय
काले अक्षर काली रात
कौन करे अब किससे बात
काली नदिया काला धन सूख रहे हैं सारे बन काला सूरज काले हाथ झुके हुए हैं सारे माथ काली बहसें काला न्याय ख़ाली मेज़ पी रही चाय काले अक्षर काली रात कौन करे अब किससे बात काली जनता काला क्रोध काला - काला है युगबोध ('अकाल में सारस'नामक कविता-संग्रह से)</poem>