{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
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{{KKCatKavita}}<poem>
दोनों चित्र सामने मेरे।
पहला
सिर पर बाल घने, घंघराले,
काले, कड़े, बड़े, बिखरे-से,
मस्तीमस्ती, आजादी, बेफिकरी,
बेखबरी के हैं संदेसे।
माथा उठा हुआ ऊपर को,
भौंहों में कुछ टेढ़ापन है,
दुनिया को है एक चुतौतीचुनौती,
कभी नहीं झुकने का प्राण है।
नयनों में छाया-प्रकाश की
आँख-मिचौनी छिड़ी परस्पर,
बेचैनी में, बेसब्री में
लुके-छिपे हैं सपने सुंदर
आँख-मिचौनी छिड़ी परस्पर, बेचैनी में, बेसबरी में लुके-छिपे हैं अपने सुंदरदूसरा
सिर पर बाल कढ़े कंघी से
तरतीबी से, चिकने काले,
जग की रुढि़-रीति ने जैसे
मेरे ऊपर फंदें डाले।
भौंहें झुकी हुईं नीचे को,
माथे के ऊपर है रेखा,
अंकित किया जगत ने जैसे
मुझ पर अपनी जय का लेखा।
नयनों के दो द्वार खुले हैं,
समय दे गसा गया ऐसी दीक्षा, स्वागत स्वागत सबके लिए यहाँ पर,
नहीं किसी के लिए प्रतीक्षा।
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