भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुकारता पपीहरा पि...या पि...या / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} पुकारता पपीहरा पि...या, पि...या, ...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
पुकारता पपीहरा पि...या, पि...या, | पुकारता पपीहरा पि...या, पि...या, |
11:36, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
पुकारता पपीहरा पि...या, पि...या,
प्रतिध्वनित निनाद से हिया-हिया;
हरेक प्यार की पुकार में असर,
कहाँ उठी,
कहाँ सुनी गई
मगर!
घटा अखंड आसमान में घिरी,
लगी हुई अखंड भूमि पर झरी,
नहा रहा पपीहरा सिहर-सिहर;
अधर---सुधा
निमग्न हो रहेए
अधर!
सुनील मेघहीन हो गया गगन,
बसुंधरा पड़ी हरित बसन,
पपीहरा लगा रहा वह रटन;
प्रणय तृषा
अतृप्त सर्वदा
अमर!