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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
कानपूर कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,<br>
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br>
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br>
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,<br>
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,<br>
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।खिलवाड़| <br><br>
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,<br>
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,<br>
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,<br><br>
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में|
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से को मिली भवानी थी,<br>
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
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