"चंद शेर / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो | उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो | ||
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न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । | न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । | ||
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ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं | ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं | ||
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पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । | पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । | ||
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जी बहुत चाहता है सच बोलें | जी बहुत चाहता है सच बोलें | ||
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क्या करें हौसला नहीं होता । | क्या करें हौसला नहीं होता । | ||
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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे | दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे | ||
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जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । | जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । | ||
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एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा | एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा | ||
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ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये । | ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये । | ||
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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी | इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी | ||
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लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । | लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । | ||
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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है | वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है | ||
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कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे । | कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे । | ||
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में | लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में | ||
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तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। | तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। | ||
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, | पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, | ||
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आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते । | आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते । | ||
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तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था. | तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था. | ||
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फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला । | फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला । | ||
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मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है | मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है | ||
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मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । | मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । | ||
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मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ | मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ | ||
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चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे । | चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे । |
11:54, 14 जून 2007 का अवतरण
कवि: बशीर बद्र
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उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
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ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
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जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।
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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
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एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
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इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
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पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
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तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था. फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
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मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है ।
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मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।