कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रभाकर माचवे]][[Category:कविताएँ]]}}{{KKCatGeet}}<poem>इस मुसाफ़िरी का कुछ न ठिकाना भइया !याँ हार बन गया अदना दाना, भइया ।[[Category:प्रभाकर माचवे]]है पता न कितनी और दूर है मंज़िलहम ने तो जाना केवल जाना, भइया !
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तकरार न करना जाना है एकाकीहमराह बचेगा कौन भला अब बाक़ी:जब सम्बल भी सब एक-एक कर छुटताबस बची एक झाँकी उन नक़्शे-पा की ।
इस मुसाफ़िरी का कुछ न ठिकाना भैया !<br>याँ हार बन गया अदना दाना, भैया ।<br>:है पता न कितनी और दूर है मंज़िल<br>हम ने तो जाना केवल जाना भैया !<br><br> तकरार न करना जाना है एकाकी<br>हमराह बचेगा कौन भला अब बाकी<br>:जब सम्बल भी सब एक-एक कर छुटता<br>बस बची एक झाँकी उन नक्शे-पा की ।<br><br> छुट छूट चले राह में नयेनए-पुराने साथी<br>मिट गयी गई मार्गदर्शक यह कम्पित बाती<br>:नंगी प्रकृति वीरान भयावह आगे<br>मैं जाता हूँ, आओ, हो जिस की छाती !<br><br/poem>