लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]}}{{KKCatKavita}}<poem>लहर रही शशिकिरण चूम निर्मल यमुनाजल,चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर,बही वायु स्वछन्द, सकल पथ घूम घूम कर
लहर रही शशिकिरण चूम निर्मल यमुनाजल,<br>चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल<br><br> कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर,<br>बही वायु स्वछन्द, सकल पथ घूम घूम कर<br><br> है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु अधर<br>जिनमें हैं भाव भरे हुए सकल-शोक-सन्तापहर !<br><br/poem>