"पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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एक कुएँ में दुनिया थी, दुनिया में मैं | एक कुएँ में दुनिया थी, दुनिया में मैं | ||
गोल है, कितना गहरा पता था मुझे | गोल है, कितना गहरा पता था मुझे | ||
− | हाय री बाल्टी, | + | हाय री बाल्टी, मैंने डुबकी जो ली |
फिर धरातल में उझला गया था मुझे | फिर धरातल में उझला गया था मुझे | ||
मेरी दुनिया लुटी, ये कहाँ आ गया | मेरी दुनिया लुटी, ये कहाँ आ गया | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ... | पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ... | ||
− | + | मेंढकी मेरी जाँ, तू वहाँ, मैं यहाँ | |
तेरे चारों तरफ़ ईंट का वो समाँ | तेरे चारों तरफ़ ईंट का वो समाँ | ||
मैं मरा जा रहा, ये खुला आसमाँ | मैं मरा जा रहा, ये खुला आसमाँ | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
आज सोचा कि खुल के ज़रा साँस लूँ | आज सोचा कि खुल के ज़रा साँस लूँ | ||
बाज देखा तो की याद नानी था मैं | बाज देखा तो की याद नानी था मैं | ||
− | + | कीचड़ों में पड़ा मन से कितना लड़ा | |
− | हाय | + | हाय कुएं में खुद अपना सानी था मैं |
संग तेरे दिवारों की काई सनम | संग तेरे दिवारों की काई सनम | ||
जी मचलता है मैं अब चखूँ तब चखूँ | जी मचलता है मैं अब चखूँ तब चखूँ | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 51: | ||
सोने दूंगा न जंगल को सब देखना | सोने दूंगा न जंगल को सब देखना | ||
− | हाय मुश्किल में | + | हाय मुश्किल में आवाज़ खुलती नहीं |
भोर होगी तो मैं फिर से एक मौन हूँ | भोर होगी तो मैं फिर से एक मौन हूँ | ||
मुझको बरसात में सुर मिले री सखी | मुझको बरसात में सुर मिले री सखी | ||
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ.. | पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ.. | ||
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19:15, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
मुझको बरसात में सुर मिले, री सखी!
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ..
एक कुएँ में दुनिया थी, दुनिया में मैं
गोल है, कितना गहरा पता था मुझे
हाय री बाल्टी, मैंने डुबकी जो ली
फिर धरातल में उझला गया था मुझे
मेरी दुनिया लुटी, ये कहाँ आ गया
छुपता फिरता हूँ कैसी सज़ा पा गया
मेघ देखा तो राहत मिली है मुझे
जी मचलता है मैं अब बहूँ तब बहूँ...
मुझको बरसात में सुर मिले, री सखी!
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ...
मेंढकी मेरी जाँ, तू वहाँ, मैं यहाँ
तेरे चारों तरफ़ ईंट का वो समाँ
मैं मरा जा रहा, ये खुला आसमाँ
तैरने का मज़ा इस फुदक में कहाँ
राह दरिया मिली, जो बहा ले गई
और सागर पटक कर परे हो गया
टरटराकर के मुख में भरे गालियाँ
सोचता हूँ, पिटूंगा नहीं तो बकूँ ?
मुझको बरसात में सुर मिले री सखी!
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ...
एक ज्ञानी था जब पानी-पानी था मैं
हर मछरिया के डर की कहानी था मैं
आज सोचा कि खुल के ज़रा साँस लूँ
बाज देखा तो की याद नानी था मैं
कीचड़ों में पड़ा मन से कितना लड़ा
हाय कुएं में खुद अपना सानी था मैं
संग तेरे दिवारों की काई सनम
जी मचलता है मैं अब चखूँ तब चखूँ
मुझको बरसात में सुर मिले री सखी
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ..
थम गयी है हवा जम के बरसात हो
औ छिपें चील कोटर में जा जानेमन
शोर जब कुछ थमें साँप बिल में जमें
तुमको आवाज़ दूंगा मैं गा जानेमन
मेरे अंबर जो सर पर हो तब देखना
सोने दूंगा न जंगल को सब देखना
हाय मुश्किल में आवाज़ खुलती नहीं
भोर होगी तो मैं फिर से एक मौन हूँ
मुझको बरसात में सुर मिले री सखी
पेट दुखता है मैं कुछ कहूँ, कुछ कहूँ..