|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी
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मनाली मत जइयो, गोरी
राजा के राज में।
मनाली जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो, गोरी<br>राजा के राज अधर में |<br><br>लटकीहौ, वायुदूत के जहाज़ में।
जइयो तो जइयो,<br>उड़िके मत जइयोसन्देसा न पइयो,<br>अधर में लटकीहौटेलिफोन बिगड़े हैं,<br>वायुदूत के जहाज में |<br><br>मिर्धा महाराज में।
जइयो तो जइयो,<br>सन्देसा न पइयोमशाल ले के जइयो,<br>टेलिफोन बिगड़े हैं,<br>बिजुरी भइ बैरिन मिर्धा महाराज में |<br><br>अंधेरिया रात में।
जइयो तो जइयो,<br>मशाल ले के त्रिशूल बांध जइयो,<br>बिजुरी भइ बैरिन<br>मिलेंगे ख़ालिस्तानी, अँधेरिया रात में |<br><br>राजीव के राज में।
जइयो तो जइयो,<br>त्रिशूल बाँध जइयो,<br>मिलेंगे खालिस्तानी,<br>राजीव के राज में |<br><br> मनाली तो जइहो |<br>जइहो। सुरग सुख पइहों |<br>पइहों। दुख नीको लागे, मोहे<br>राजा के राज में |में।</poem>