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|संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिहारी वाजपेयी
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मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करुँगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा थाजाने कितनी बार जिया हूँ,<br>किन्तु जाने कितनी बार मरा हूँ। जन्म मरण की माँग करुँगा।<br><br>के फेरे से मैं, इतना पहले नहीं डरा हूँ।
जाने कितनी बार जिया हूँअन्तहीन अंधियार ज्योति की,<br>जाने कितनी बार मरा हूँ।<br>कब तक और तलाश करूँगा। मैंने जन्म मरण के फेरे से मैंनहीं माँगा था,<br>इतना पहले नहीं डरा हूँ।<br><br>किन्तु मरण की मांग करूँगा।
अन्तहीन अँधियार ज्योति कीबचपन,<br>कब तक यौवन और तलाश करूँगा।<br>बुढ़ापा, मैंने जन्म नहीं माँगा थाकुछ दशकों में ख़त्म कहानी। फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,<br>किन्तु मरण की माँग करूँगा।<br><br>यह मजबूरी या मनमानी?
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,<br>कुछ दशकों में खत्म कहानी।<br>फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,<br>यह मजबूरी या मनमानी ?<br><br> पूर्व जन्म के पूर्व बसी—<br>दुनिया का द्वारचार करूँगा।<br>मैंने जन्म नहीं माँगा मांगा था,<br>किन्तु मरण की माँग मांग करूँगा।</poem>
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