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|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
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'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '<br>बोले हंस कर नबी फिर तुरत,<br>बार बार गिर, कहा शिष्य शिष्य ने<br>'यह तो नामुमकिन है हजरत'<br><br>
'हो आजाद यहां तक, कहता<br>तुमसे एक पैर उठ उपर,<br>बंधे हुए दुनिया से, कहता<br>पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -<br>पैगम्बर पैगम्बसर का था यह उत्तरउत्तर! <br><br/poem>