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"गृहकाज / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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शिथिल, स्वप्निल पंखड़ियाँ खोल,
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आज अपलक कलिकाएँ बाल,
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मर्म में मदिर स्पृहा का भार!<br><br>
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आज अपलक कलिकाएँ बाल,<br>
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गूँजता भूला भौरा डोल,<br>
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सुमुखि, उर के सुख से वाचाल!<br>
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आज चंचल-चंचल मन प्राण,<br>
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00:43, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

आज रहने हो यह गृहकाज
प्राण! रहने हो यह गृहकाज!

आज जाने कैसी वातास
छोड़ती सौरभ-श्लभ उच्छ्वास,
प्रिये, लालस-सालस वातास,
जगा रोओं में सौ अभिलाष!

आज उर के स्तर-स्तर में, प्राण!
सहज सौ-सौ स्मृतियाँ सुकुमार,
दृगों में मधुर स्वप्न संसार,
मर्म में मदिर स्पृहा का भार!

शिथिल, स्वप्निल पंखड़ियाँ खोल,
आज अपलक कलिकाएँ बाल,
गूँजता भूला भौरा डोल,
सुमुखि, उर के सुख से वाचाल!
आज चंचल-चंचल मन प्राण,
आज रे, शिथिल-शिथिल तन-भार,

आज दो प्राणों का दिन-मान
आज संसार नही संसार!
आज क्या प्रिये सुहाती लाज!
आज रहने दो सब गृहकाज!