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विजय / सुमित्रानंदन पंत

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लेखक: [[सुमित्रानंदन पंत]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत]]|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>'''उत्तरा नामक रचना से'''
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मैं चिर श्रद्धा लेकर आई वह साध बनी प्रिय परिचय में, मैं भक्ति हृदय में भर लाई, वह प्रीति बनी उर परिणय में।
''उत्तरा नामक रचना जिज्ञासा से'<br><br>था आकुल मन वह मिटी, हुई कब तन्मय मैं, विश्वास माँगती थी प्रतिक्षण आधार पा गई निश्चय मैं !
मैं चिर श्रद्धा लेकर आई<br>प्राणों की तृष्णा हुई लीन वह साध बनी प्रिय परिचय स्वप्नों के गोपन संचय में,<br>संशय भय मोह विषाद हीन लज्जा करुणा में निर्भय मैं भक्ति हृदय में भर लाई,<br>वह प्रीति बनी उर परिणय में।<br><br>!
जिज्ञासा से था आकुल मन<br>वह मिटी, हुई लज्जा जाने कब तन्मय मैंबनी मान,<br>विश्वास माँगती थी प्रतिक्षण<br>अधिकार मिला कब अनुनय में आधार पा गई निश्चय पूजन आराधन बने गान कैसे, कब? करती विस्मय मैं !<br><br>
प्राणों की तृष्णा हुई लीन<br>स्वप्नों उर करुणा के गोपन संचय में<br>हित था कातर संशय भय मोह विषाद हीन<br>सम्मान पा गई अक्षय मैं, लज्जा करुणा में निर्भय पापों अभिशापों की थी घर वरदान बनी मंगलमय मैं !<br><br>
लज्जा जाने कब बनी मान,<br>अधिकार मिला कब अनुनय में<br>पूजन आराधन बने गान<br>कैसे, कब? करती विस्मय मैं !<br><br> उर करुणा के हित था कातर<br>सम्मान पा गई अक्षय मैं,<br>पापों अभिशापों की थी घर<br>वरदान बनी मंगलमय मैं !<br><br> बाधा-विरोध अनुकूल बने<br>अंतर्चेतन अरुणोदय में,<br>पथ भूल विहँस मृदु फूल बने<br>मैं विजयी प्रिय, तेरी जय में। <br><br/poem>
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