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स्त्री / सुमित्रानंदन पंत

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|संग्रह=ग्राम्‍या / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर ,<br>दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर <br>जब बिठलाती प्रसन्न होकर <br>वह अमर प्रणय के शतदल पर !<br>
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर <br>क्षण में प्राणों की पीड़ा हर <br>नवजीवन का दे सकती वर <br>वह अधरों पर धर मदिराधर .<br>
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,<br>वासनावर्त में दल प्रखर <br>वह अंध गर्त में चिर दुस्तर <br>नर को धेकेल सकती सत्वर ! <br/poem>
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