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गिरिराज / सोहनलाल द्विवेदी

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{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}} {{KKCatKavita}}<poem>यह है भारत का शुभ्र मुकुट<br>यह है भारत का उच्च भाल,<br>सामने अचल जो खड़ा हुआ<br>हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल!<br><br>
कितना उज्ज्वल, कितना शीतल<br>कितना सुन्दर इसका स्वरूप?<br>है चूम रहा गगनांगन को<br>इसका उन्नत मस्तक अनूप!<br><br>
है मानसरोवर यहीं कहीं<br>जिसमें मोती चुगते मराल,<br>हैं यहीं कहीं कैलास शिखर<br>जिसमें रहते शंकर कृपाल!<br><br>
युग युग से यह है अचल खड़ा<br>बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र!<br>इसके अँचल में बहती हैं<br>गंगा सजकर नवफूल पत्र!<br><br>
इस जगती में जितने गिरि हैं<br>सब झुक करते इसको प्रणाम,<br>गिरिराज यही, नगराज यही<br>जननी का गौरव गर्व–धाम!<br><br>
इस पार हमारा भारत है,<br>उस पार चीन–जापान देश<br>मध्यस्थ खड़ा है दोनों में <br> एशिया खंड का यह नगेश! <br><br/poem>
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