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"गीत / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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देख रहा है जग को निर्भय, | देख रहा है जग को निर्भय, | ||
दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें। | दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें। | ||
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21:15, 18 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
जैसे हम हैं वैसे ही रहें,
लिये हाथ एक दूसरे का
अतिशय सुख के सागर में बहें।
मुदें पलक, केवल देखें उर में,-
सुनें सब कथा परिमल-सुर में,
जो चाहें, कहें वे, कहें।
वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय
देख रहा है जग को निर्भय,
दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।