भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बरसै तरसै सरसै अरसै न् / घनानंद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }}<poem>बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:12, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं।
निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं।
घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं।
रसमूरति स्यामहिं देखत ही सजनी अँखियाँ रसरासि भईं॥