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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
 
{{KKPustak
|चित्र=Ek_Jawaan_Maut.jpg
|नाम=घर-आँगन (रुबाइयाँ)
|रचनाकार=[[जाँ निसार अख़्तर]]
|प्रकाशक=वाणी प्रकाशन|वर्ष= ---1999
|भाषा=हिन्दी
|विषय=--|शैली=--|पृष्ठ=118|ISBN=--|विविध=--निदा फ़ाज़ली द्वारा संपादित
}}
 
* [[वो आयेंगे चादर तो बिछा दूँ कोरी / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[आहट मेरे कदमों की जो सुन पाई है / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[तेरे लिये बेताब हैं अरमाँ कैसे / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[अब तक वही बचने की सिमटने की अदा / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[दरवाजे की खोलने उठी है ज़ंजीर / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[क्यों हाथ जला, लाख छुपाए गोरी / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[चुप रह के हर इक घर की परेशानी को / जाँ निसार अख़्तर]]
* [[जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे / जाँ निसार अख़्तर]]
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