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* [[पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र]] | * [[पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र]] | ||
* [[हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र]] | * [[हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र]] | ||
− | * [[वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र | + | * [[वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र]] |
* [[सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र]] | * [[सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र]] | ||
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+ | * [[हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[दिल पे छाया रहा उमस की तरह / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[ये चिराग बेनज़र है ये सितारा बे ज़ुबाँ है / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र]] | ||
+ | * [[ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊंगा / बशीर बद्र]] |
20:15, 22 अक्टूबर 2009 का अवतरण
आस
रचनाकार | बशीर बद्र |
---|---|
प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
वर्ष | 2000 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 114 |
ISBN | |
विविध | साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित |
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- यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र
- कोई फूल धूप की पत्तियों में / बशीर बद्र
- आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा / बशीर बद्र
- हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में / बशीर बद्र
- नारियल के दरख़्तों की पागल हवा / बशीर बद्र
- सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र
- कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं / बशीर बद्र
- उनको आईना बनाया / बशीर बद्र
- सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी / बशीर बद्र
- इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र
- पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र
- हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र
- वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र
- सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र
- कभी यूँ भी आ मेरी आँख में / बशीर बद्र
- कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी / बशीर बद्र
- वो ग़ज़ल वालों को असलूब समझते होंगे / बशीर बद्र
- सूरज चंदा जैसी जोड़ी हम दोनों / बशीर बद्र
- मैक़दा रात ग़म का घर निकला / बशीर बद्र
- हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए / बशीर बद्र
- मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे / बशीर बद्र
- दिल पे छाया रहा उमस की तरह / बशीर बद्र
- सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं / बशीर बद्र
- ये चिराग बेनज़र है ये सितारा बे ज़ुबाँ है / बशीर बद्र
- सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र
- सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र
- ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊंगा / बशीर बद्र