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निकली हुई महाज्वाला में
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घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम
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कामदेव जब भस्म हो गया
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रति का क्रंदन सुन आँसू से
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तुमने ही तो दृग धोये थे
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वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
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प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
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देख गगन में श्याम घन-घटा
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विधुर यक्ष का मन जब उचटा
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खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
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चित्रकूट से सुभग शिखर पर
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उस बेचारे ने भेजा था
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जिनके ही द्वारा संदेशा
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उन पुष्करावर्त मेघों का
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साथी बनकर उड़ने वाले
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कालिदास! सच-सच बतलाना
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22:10, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

कालिदास! सच-सच बतलाना
इन्दुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना!

शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे
कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे?

वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट से सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास! सच-सच बतलाना
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थककर औ' चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे!

कालिदास! सच-सच बतलाना!