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"रघुपति! भक्ति करत कठिनाई / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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रघुपति! भक्ति करत कठिनाई।
 
रघुपति! भक्ति करत कठिनाई।

23:39, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

रघुपति! भक्ति करत कठिनाई।
कहत सुगम करनी अपार, जानै सोई जेहि बनि आई॥
जो जेहिं कला कुसलता कहँ, सोई सुलभ सदा सुखकारी॥
सफरी सनमुख जल प्रवाह, सुरसरी बहै गज भारी॥
ज्यो सर्करा मिले सिकता महँ, बल तैं न कोउ बिलगावै॥
अति रसज्ञ सूच्छम पिपीलिका, बिनु प्रयास ही पावै॥
सकल दृश्य निज उदर मेलि, सोवै निन्द्रा तजि जोगी॥
सोई हरिपद अनुभवै परम सुख, अतिसय द्रवैत बियोगी॥
सोक, मोह, भय, हरष, दिवस, निसि, देस काल तहँ नाहीं॥
तुलसीदास यहि दसाहीन, संसय निर्मूल न जाहीं॥