गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ग़म बढ़े आते हैं / सुदर्शन फ़ाकिर
No change in size
,
10:23, 26 नवम्बर 2006
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
ग़म
बड़े
बढे़
आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह <br>
तुम छिपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह <br><br>
Lalit Kumar
Founder, Mover, Uploader,
प्रशासक
,
सदस्य जाँच
,
प्रबंधक
,
widget editor
21,911
edits